वृक्क विज्ञान
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NEPHROLOGY
परिचय
वृक्क विज्ञान विभाग 1969 में काय चिकित्सा विभाग की एक इकाई के रूप में आरंभ किया गया था। काय चिकित्सा विभाग में कार्यरत डॉ. अवस्थी ने 1970 के दौरान डायलिसिस इकाई स्थापित की और 5 अगस्त 1971 को पहला डायलिसिस किया गया था। जबकि यहां गुर्दा क्लिनिक 27 अक्तूबर 1969 से मौजूद था। प्रो. के के मल्होत्रा यूएसए से वापस आने के बाद काय चिकित्सा विभाग की वृक्क विज्ञान इकाई को संभालने वाले प्रथम संकाय सदस्य थे। इसके बाद प्रो. रमेश कुमार ने 1973 में कार्यभार संभाला। इसके पहले अप्रैल 1972 में विभाग में पहला गुर्दा प्रतिरोपण किया गया था। परिणामस्वरूप वृक्क विज्ञान इकाई के संकाय में प्रो. एस सी दास 25 मार्च 1977 को वृक्क विज्ञान विभाग में आए और इसके बाद सितम्बर 1980 में प्रो. एस सी तिवारी आए।
शुरूआती दिनों में वृक्क विज्ञान 'पुराने ऑपरेशन थिएटर' ब्लॉक नामक भवन में बनाया गया था जहां यह पहले तल पर (लिफ्ट के बिना) था और डायलिसिस की इकाई भूतल पर थी। जब यह विभाग 1987 में चौथे तल पर दीपावली से ठीक पहले मुख्य अस्पताल ब्लॉक में स्थानांतरित किया गया, और तंत्रिका शल्य चिकित्सा विभाग को चौथे तल से 'सीएन सेंटर ब्लॉक' में स्थानांतरित किया गया। हाल ही में विभाग में निजी व्यवस्था वाले अस्पतालों के समान सुविधाएं प्रदान करने के लिए अध्यापन अस्पताल विशेषज्ञता सहित इसका जीर्णोद्धार किया गया है। आरंभ में वृक्क विज्ञान विभाग में दो प्रकार के रेजीडेंट डॉक्टर होते थे, पहले वे जो काय चिकित्सा से आते थे और अन्य जो सीधे वृक्क विज्ञान में कार्य करने के लिए आते थे। पूर्व अवधि में सीधे वृक्क विज्ञान में आने वाले रेजीडेंट राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड के माध्यम से डिप्लोमेट बोर्ड ऑफ नेफ्रोलॉजी से गुजरते थे। वर्ष 1989 में वृक्क विज्ञान विभाग का सृजन दो संकाय के साथ किया गया और वृक्क विज्ञान में डी. एम. 1992 में आरंभ किया गया था। वर्ष 1989 में प्रो. एस के अग्रवाल ने तदर्थ संकाय के रूप में इस पृथक विभाग में कार्यभार संभाला और 1991 से एक नियमित संकाय के रूप में कार्य जारी रखा। तब से 4 अन्य संकाय सदस्य, डॉ. संजीव सक्सेना, डॉ. संजय गुप्ता, डॉ. डी. भौमिक और डॉ. एस महाजन ने विभाग में कार्यभार संभाला है, जबकि प्रो. के. के. मल्होत्रा, प्रो. रमेश कुमार, प्रो. एस सी दास और प्रो. एस सी तिवारी (सेवानिवृत्ति या अन्यथा) या त्याग पत्र के पश्चात विभाग से चले गए हैं। वर्तमान में विभाग में 7 संकाय सदस्य और 13 सीनियर रेजीडेंट मौजूद हैं। यहां 14 नियमित हीमोडायलिसिस स्टेशन, चार आइसोलेशन हीमोडायलिसिस और दो एक्यूट इंटरमिटेंट पेरीटोनियल डायलिसिस बैड हैं। विभाग द्वारा सभी प्रकार के रोगियों को सर्वोत्तम वृक्क विज्ञान देखभाल प्रदान की जाती है जो सभी प्रकार की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं और ये सुविधाएं बहुत अधिक सब्सिडी लागत पर किसी सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पताल की व्यवस्था में प्रदान की जाती हैं जिसमें प्लाज्मा फेरेसिस, सीआरआरटी, एसएलईडी आदि शामिल हैं। वर्तमान में विभाग में प्रति वर्ष लगभग 140 गुर्दा प्रतिरोपण किए जाते हैं जिनमें से अधिकांश मामले जीवित संबंधियों के हैं किन्तु मृत्यु पश्चात गुर्दा प्रतिरोपण भी किए गए हैं।